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ठगिनी और व्यापारी भाग-7

        भाग- 7

व्यापारी पुत्र यशवर्धन अब उस ठग के घर में फंस चुका था. उसे नहीं पता था की वो ठग और उसका परिवार आगे क्या करने वाले हैं. उसने ईश्वर का ध्यान किया और चुपचाप उस खाट पर बैठ गया. उसे पता था की मुशीबत कभी भी आ सकती है लेकिन वह तो यह भी नहीं जानता की मुशीबत जनाना होगी या मर्दाना. वह चुपचाप सर को नीचे झुकाकर बैठ गया.
इधर वो बूढा ठग और उसकी तीस वर्षीय बेटी अन्दर उसके मरने का इन्तजार कर रहे थे. ठग ने थोडा गंभीर होकर उससे पुछा- बेटी. तुम्ने  तो कहा था की तुमने उसके खाने में जहर बहूत सारा मिला दिया था लेकिन वह मरा क्यों नहीं अब तक?
अनंत प्रिया- पिताजी मैंने तो मिलाया था लेकिन अब वो कमबख्त मरा नहीं तो मैं क्या करूँ? पता नहीं किस मिट्टी से बना है?
ठग- अरे बेटा ऐसा कुछ नहीं है? ध्यान से देखो क्या तुमने उसके खाने में जहर मिलाया था?
अनंतप्रिया- हाँ! पिताजी मिलाया तो था. अगर यकीन न हो तो आप खाकर देख लो.
ठग ने थोडा सा क्रोधित होकर कहा- तुम पागल हो क्या? जो अपने पिताजी को मरा हुआ देखना चाहती हो? चल मैं देखता हूँ वो मरा कैसे नहीं? तब तक तुम हमारी दूसरी योजना पर काम करो.
अनंतप्रिया- जी पिताजी..
इतना कहकर अनंतप्रिया अपने पिता के कहे अनुसार आगे की योजना का क्रियान्वयन करने चली जाती है. इधर वो ठग यशवर्धन के पास पहुच जाता है. वह यशवर्धन से प्यार से कहंता है- खाना खा लिया क्या बेटा तुमने?
यश ने झिझकते हुए कहा- हाँ.. हाँ.. खा लिया चाचाजी.. बहुत अच्छा लगा..
ठग- अच्छा...
यश- हाँ चाचाजी, बहुत अच्छा लगा..
यश जैसे ही बोलता है उसी दौरान वह मन में सोचता है. कमीने तुमने और तुम्हारी बेटी ने तो मुझे मारने की पूरी योजना बना रखी थी. ये तो भला हो मेरे उस ब्राह्मण दोस्त का। जिनसे मुझे वो अनमोल बात बताई वर्ना मैं तो उस बिल्ली की तरह कब का लुढ़क जाता.
ठग- क्या सोच रहे हो बेटा?
यश- कुछ नहीं चाचाजी सोच रहा था की क्या आप इतना स्वादिष्ट भोजन सभी मेहमानों के लिए ही बनाते हो या सिर्फ ये मेहरबानी मुझ पर ही की है?
ठग हिचकिचाते हुए कहता है- हाँ. हाँ.. सबके लिए ही बनाते हैं.. आखिर मेहमान भगवान का जो रूप होता है.
यश मन में सोचता है- हाँ तभी तो आप सब को शिव समझकर जहर का भोग लगाते हो. हे भगवान बुरा फंसा आज तो. अब क्या करूँ?
ठग- क्या सोच रहे हो बेटा?
यश- कुछ नहीं चाचाजी.
ठग- अरे! बेटा मैं भी ना कितना मुर्ख हूँ. तुम थके हुए हो. तुम्हे नींद आ रही होगी? मैंने तुम्हारा बिस्तर लगवा दिया है कमरे में. तुम जाकर जो जाओ.
यश ने झूठी मुस्कुराहट मुस्कुराते हुए कहा- ठीक है चाचाजी. वह धीरे-धीरे उस कक्ष की तरफ बढ़ता है. उसके मन में हजार सवाल थे लेकिन जवाब एक का भी नहीं था. वह इतनी बुरी परिस्थिति मैं फंस जाएगा इस बात का उसे आभास नहीं था. उसने डरते हुए दरवाजा खोला. उसे जोर की प्यास लगी हुई थी लेकिन वह पानी नहीं पीना चाहता था क्योंकि क्या पता उसमे भी जहर मिला हुआ हो सकता था. उसने दरवाजे के कुण्डी लगा दी ताकि बाहर से कोई अंदर नहीं आ सके. हालाँकि अन्दर उसके साथ क्या होगा यह वह नहीं जानता था. वह धीमे-धीमे बडबडाता हुए उस बिस्तर की तरफ बढ़ा. उसने धीमे से बुदबुदाया- जाको राखे साईयां मार सके ना कोई.
लेकिन ये कहावत बस दिल को तसल्ली देने के लिए थी. जब डर के मारे किसी की बजती है तो उसका कुछ नहीं कहा जा सकता. उसने धीमे-धीमे उस बिस्तर की तरफ कदम बढाए. वह सोच रहा था की क्या पता उस ठग और उसकी दोनों बेटियों ने उसके बिस्तर(बेड) के नीचे कोई चुड़ैल छोड़ दी हो? लेकिन अगले ही पल उसने सोचा की उसकी बड़ी बेटी क्या किसी चुड़ैल से कम है? जो पैसो के लिए एक सुन्दर से युवक को मारने पर उतारू हो गई. कमिनी की इसी कारण शादी नहीं हुई है. भला ऐसी ठगिनी के साथ कौन शादी करे? ऐसे ही न जाने कितने ही सवाल उसके दिमाग में थे लेकिन उसके साथ आगे क्या होगा इसका जवाब तो समय के पास ही था. वह आज रात को बलि का बकरा बनेगा या फिर जिन्दा बचेगा इसका जवाब या तो भगवान् के पास था या फिर वक्त के पास. वह काफी थक चुका था इस कारण उसने बिस्तर पर लेटकर योजना बनाने की सोची. वह उस बिस्तर पर जैसे ही लेटने लगा अचानक उसे उस ब्राहमण पुत्र का तीसरा कथन याद आ गया. जो उसने बताया था की तुम जब भी किसी के घर में मेहमान बनकर जाओ और जब उसके घर में उस बिस्तर पर सोवो तो उससे पहले तुमहे उस बिस्तर को समेटकर वापस बिछाना है. उसने सावधानी से उस बिस्तर पर बिछाए गए बिछोने को जैसे ही उठाया वह डर के मारे चौंक गया.
ओह.......... उफ़...
उसने जैसे ही उस बिस्तर को देखा वह तो चौंक गया. जिस मचान ( आधुनिक बेड के जैसा कुछ) पर उसका बिस्तर लगाया हुआ था उसे लकड़ी से बनाने की बजाय कच्चे धागों से बुना गया था. उस मचान के सीध में निचे एक तलघर में मकान बना हुआ था जो की उस कमरे से बीस फीट गहरा था. उस कक्ष में एक तेल की कड़ाई चढ़ाई गई थी जिसमे तेल उबल रहा था. वह डर के मारे सिहर गया. आग की लपटों और तेल की गर्मी को ऊपर तक महसूस किया जा सकता था. उसका सारा शरीर कांपने लगा. उसकी मौत का पूरामंदोबस्त किया गया था. कच्चे धागों से बना हुआ उसका मचान. फिर उस पर सुन्दर सा बिस्तर लगा हुआ था ताकि किसी को भी कोई शक ना हो. फिर जो कोई भी उस पर सोता उसके वजन की वजह से वो धागे टूट जाते और बिस्तर सहित वह उस कड़ाई में जा गिरता जिसमे उबलता हुआ तेल था और पलभर में ही उसकी भुर्जी बन जाती. लेकिन एक बार फिर उसे उस ब्राह्मण के कथन ने बचा लिया. उसने अपने माथे का पसीना पौंछा और उस बिस्तर को पुन: उसी तरह बिछा दिया. वह अब निराशा के कहरे अंधकार में डूब गया था. उसे पता था की अब इस ठग के घर से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था लेकिन उसे कैसे भी करके वहां से निकलना था. उसने इधर उधर नजर दौड़ाई तो उस कक्ष में एक खिड़की नजर आई लेकिन जैसे ही उसने उस खिड़की को खोलकर देखा तो पता चला की वह मकान जमीन से कम से कम बीस फीट ऊपर था ऐसे में जमीन तक पहुंचनामुश्किल था. उसने निराश होकर उस खिड़की को पुन: बंद कर दिया.
इधर एक पहर बीत जाने के बाद भी जब यशवर्धन कड़ाई में नहीं गिरा तो उसकी बड़ी बेटी और  वो ठग दोनों उसकी छोटी बेटी के कक्ष की तरफ जाते हैं.
क्रमश..

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4 Comments

Dilawar Singh

15-Feb-2024 03:06 PM

अद्भुत अति सुन्दर प्रस्तुति👌👌

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Fiza Tanvi

20-Nov-2021 01:09 PM

Good

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Miss Lipsa

30-Aug-2021 03:49 PM

Wow

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